प्रधान के चुनाव में अभी लगभग महीना–भर था। एक दिन छोटे पहलवान ने वैद्यजी की बैठक पर कहा, ‘‘सनीचर तीन दिन से कालिकाप्रसाद के साथ शहर के चक्कर काट रहा था। आज खबर मिली है कि मामला चुर्रैट हो गया है।’’ वैद्यजी तख्त पर बैठे थे। सुनते ही उत्सुकता के मारे कुलबुलाने लगे। पर उत्सुकता को ज़ाहिर करना और छोटे से सीधे बात करना–दोनों चीज़ें शान के ख़िलाफ़ पड़ती थीं, इसलिए उन्होंने रंगनाथ से कहा, ‘‘सनीचर को बुलवा लिया जाय।’’ छोटे पहलवान ने अपनी जगह पर खड़े–ही–खड़े दहाड़ा, ‘‘सनीचर, सनीचर, सनीचर हो ऽ ऽ ऽ!’’ शिवपालगंज में ऐसे आदमी को बुलाने की, जो निगाह और हाथ की पहुँच से दूर हो, यह एक ख़ास शैली थी। इसे प्रयोग
प्रधान के चुनाव में अभी लगभग महीना–भर था। एक दिन छोटे पहलवान ने वैद्यजी की बैठक पर कहा, ‘‘सनीचर तीन दिन से कालिकाप्रसाद के साथ शहर के चक्कर काट रहा था। आज खबर मिली है कि मामला चुर्रैट हो गया है।’’ वैद्यजी तख्त पर बैठे थे। सुनते ही उत्सुकता के मारे कुलबुलाने लगे। पर उत्सुकता को ज़ाहिर करना और छोटे से सीधे बात करना–दोनों चीज़ें शान के ख़िलाफ़ पड़ती थीं, इसलिए उन्होंने रंगनाथ से कहा, ‘‘सनीचर को बुलवा लिया जाय।’’ छोटे पहलवान ने अपनी जगह पर खड़े–ही–खड़े दहाड़ा, ‘‘सनीचर, सनीचर, सनीचर हो ऽ ऽ ऽ!’’ शिवपालगंज में ऐसे आदमी को बुलाने की, जो निगाह और हाथ की पहुँच से दूर हो, यह एक ख़ास शैली थी। इसे प्रयोग में लाने के लिए सिर्फ़ बेशर्म गले, मज़बूत फेफड़े और बिना मिलावट के गँवरपन की ज़रूरत थी। इस शैली का इस्तेमाल इसी समझ पर हो सकता था कि सुननेवाला जहाँ कहीं भी होगा, तीन बार में अपना नाम एक बार तो सुन ही लेगा और अगर एक बार भी नहीं सुनेगा तो दोबारा पुकारने पर तो सुन ही लेगा, क्योंकि दोबारा उसका नाम इस प्रकार पुकारा जाएगा, ‘‘अरे कहाँ मर गया सनिचरा, सनिचरा रे !’’ जिस गै़र–रस्मी तरीक़े से छोटे पहलवान ने सनीचर को पुकारा था, उसी ग़ैर–रस्मी तरीके से सनीचर अपना नाम सुनते ही वैद्यजी की बैठक में आकर खड़ा हो गया। उसका अण्डरवियर कुछ महत्त्वपूर्ण स्थानों पर फट गया था, बदन नंगा था, पर बालों में कड़वा तेल चुचुवा रहा था और चेहरा प्रसन्न था। पता लगना मुश्किल था कि उसका मुँह ज़्यादा फटा हुआ है या अण्डरवियर। तात्पर्य यह कि इस समय सनीचर को देखकर यह साबित हो जाता था कि अगर हम खुश रहें तो गरीबी हमें दुखी नहीं कर सकती और ग़रीबी को मिटाने की असली योजना यही है कि हम बराबर खुश रहें। वैद्यजी ने सनीचर से पूछा, ‘‘क्या...
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