वे लोग कुछ देर चुपचाप चलते रहे। प्रिंसिपल साहब ने वैद्यजी से कहा, ‘‘इन्स्पेक्टर साहब के घर से पीपा वापस नहीं आया।’’ वैद्यजी गम्भीरतापूर्वक चलते रहे। सोचकर बोले, ‘‘दस सेर के लगभग तो होगा ही। जब इतना घी दे दिया तो पीपे का क्या शोक ?’’ प्रिंसिपल हँसे। बोले, ‘‘ठीक है। जाने दीजिए। जब गाय ही चली गई तो पगहे का क्या अफ़सोस !’’ ‘‘वही तो।’’ वैद्यजी और भी गम्भीर हो गए और कथा बाँचने लगे, ‘‘जब हाथी दान कर दिया तो अंकुश का क्या झगड़ा ! राम ने जब विभीषण का राजतिलक किया तो जाम्बवन्त बोले कि महाराज, सोने का एक भवन तो अपने लिए रख लिया होता। उस पर मर्यादा-पुरुषोत्तम श्री रामचन्द्रजी महाराज क्या कहते हैं कि ‘हे
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