रात रंगनाथ और बद्री छत पर कमरे में लेटे थे और सोने के पहले की बेतरतीब बातें शुरू हो गई थीं। रंगनाथ ने अपनी बात ख़त्म करते हुए कहा, ‘‘पता नहीं चला कि प्रिंसिपल और खन्ना में क्या बात हुई। ड्रिल-मास्टर बाहर खड़ा था। खन्ना मास्टर ने चीख़कर कहा, ‘आपकी यही इन्सानियत है !’ ’’ वह सिर्फ़ इतना ही सुन पाया। बद्री ने जम्हाई लेते हुए कहा, “ प्रिंसिपल ने गाली दी होगी। उसी के जवाब में उसने इन्सानियत की बात कही होगी। यह खन्ना इसी तरह बात करता है। साला बाँगड़ू है।’’ रंगनाथ ने कहा, ‘‘गाली का जवाब तो जूता है।’’ बद्री ने इसका कोई जवाब नहीं दिया। रंगनाथ ने फिर कहा, ‘‘मैं तो देख रहा हूँ, यहाँ इन्सानियत का ज़िक्र ही
रात रंगनाथ और बद्री छत पर कमरे में लेटे थे और सोने के पहले की बेतरतीब बातें शुरू हो गई थीं। रंगनाथ ने अपनी बात ख़त्म करते हुए कहा, ‘‘पता नहीं चला कि प्रिंसिपल और खन्ना में क्या बात हुई। ड्रिल-मास्टर बाहर खड़ा था। खन्ना मास्टर ने चीख़कर कहा, ‘आपकी यही इन्सानियत है !’ ’’ वह सिर्फ़ इतना ही सुन पाया। बद्री ने जम्हाई लेते हुए कहा, “ प्रिंसिपल ने गाली दी होगी। उसी के जवाब में उसने इन्सानियत की बात कही होगी। यह खन्ना इसी तरह बात करता है। साला बाँगड़ू है।’’ रंगनाथ ने कहा, ‘‘गाली का जवाब तो जूता है।’’ बद्री ने इसका कोई जवाब नहीं दिया। रंगनाथ ने फिर कहा, ‘‘मैं तो देख रहा हूँ, यहाँ इन्सानियत का ज़िक्र ही बेकार है।’’ बद्री ने सोने के लिए करवट बदल ली। ‘गुड नाइट’ कहने की शैली में बोले, ‘‘सो तो ठीक है। पर यहाँ जो भी क–ख–ग–घ पढ़ लेता है, उर्दू भूँकने लगता है। बात–बात में इन्सानियत–इन्सानियत करता है ! कल्ले में जब बूता नहीं होता, तभी इन्सानियत के लिए जी हुड़कता है।’’ बात ठीक थी। शिवपालगंज में इन दिनों इन्सानियत का बोलबाला था। लौण्डे दोपहर की घनी अमराइयों में जुआ खेलते थे। जीतनेवाले जीतते थे, हारनेवाले कहते थे, ‘यही तुम्हारी इन्सानियत है ? जीतते ही तुम्हारा पेशाब उतर आता है। टरकने का बहाना ढूँढ़ने लगते हो।’ कभी–कभी जीतनेवाला भी इन्सानियत का प्रयोग करता था। वह कहता, ‘क्या इसी का नाम इन्सानियत है ? एक दाँव हारने में ही पिलपिला गए। यहाँ चार दिन बाद हमारा एक दाँव लगा तो उसी में हमारा पेशाब बन्द कर दोगे ?’ ताड़ीघर में मज़दूर लोग सिर को दायें–बायें हिलाते रहते। 1962 में भारत को चीन के विश्वासघात से जितना सदमा पहुँचा था, उसी तरह के सदमे का दृश्य पेश करते हुए वे कहते, ‘बुधुवा ने पक्का मकान बनवा डाला...
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