Rahul Mahawar

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भीखमखेड़वी के नाम से ही प्रकट था कि वे शायर भी होंगे। अब तो वे नहीं थे, पर कलकत्ता के अच्छे दिनों में वे एकाध बार शायर हो गए थे। उर्दू कवियों की सबसे बड़ी विशेषता उनका मातृभूमि–प्रेम है। इसीलिए बम्बई और कलकत्ता में भी वे अपने गाँव या कस्बे का नाम अपने नाम के पीछे बाँधे रहते हैं और उसे खटखटा नहीं समझते। अपने को गोंडवी, सलोनवी और अमरोहवी कहकर वे कलकत्ता–बम्बई के कूप–मण्डूक लोगों को इशारे से समझाते हैं कि सारी दुनिया तुम्हारे शहर ही में सीमित नहीं है। जहाँ बम्बई है, वहाँ गोंडा भी है। एक प्रकार से यह बहुत अच्छी बात है, क्योंकि जन्मभूमि के प्रेम से ही देश–प्रेम पैदा होता है। जिसे अपने को बम्बई में ...more
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राग दरबारी
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