भीखमखेड़वी के नाम से ही प्रकट था कि वे शायर भी होंगे। अब तो वे नहीं थे, पर कलकत्ता के अच्छे दिनों में वे एकाध बार शायर हो गए थे। उर्दू कवियों की सबसे बड़ी विशेषता उनका मातृभूमि–प्रेम है। इसीलिए बम्बई और कलकत्ता में भी वे अपने गाँव या कस्बे का नाम अपने नाम के पीछे बाँधे रहते हैं और उसे खटखटा नहीं समझते। अपने को गोंडवी, सलोनवी और अमरोहवी कहकर वे कलकत्ता–बम्बई के कूप–मण्डूक लोगों को इशारे से समझाते हैं कि सारी दुनिया तुम्हारे शहर ही में सीमित नहीं है। जहाँ बम्बई है, वहाँ गोंडा भी है। एक प्रकार से यह बहुत अच्छी बात है, क्योंकि जन्मभूमि के प्रेम से ही देश–प्रेम पैदा होता है। जिसे अपने को बम्बई में
भीखमखेड़वी के नाम से ही प्रकट था कि वे शायर भी होंगे। अब तो वे नहीं थे, पर कलकत्ता के अच्छे दिनों में वे एकाध बार शायर हो गए थे। उर्दू कवियों की सबसे बड़ी विशेषता उनका मातृभूमि–प्रेम है। इसीलिए बम्बई और कलकत्ता में भी वे अपने गाँव या कस्बे का नाम अपने नाम के पीछे बाँधे रहते हैं और उसे खटखटा नहीं समझते। अपने को गोंडवी, सलोनवी और अमरोहवी कहकर वे कलकत्ता–बम्बई के कूप–मण्डूक लोगों को इशारे से समझाते हैं कि सारी दुनिया तुम्हारे शहर ही में सीमित नहीं है। जहाँ बम्बई है, वहाँ गोंडा भी है। एक प्रकार से यह बहुत अच्छी बात है, क्योंकि जन्मभूमि के प्रेम से ही देश–प्रेम पैदा होता है। जिसे अपने को बम्बई में ‘सँडीलवी’ कहते हुए शरम नहीं आती, वही कुरता–पायजामा पहनकर और मुँह में चार पान और चार लिटर थूक भरकर न्यूयार्क के फुटपाथों पर अपने देश की सभ्यता का झण्डा खड़ा कर सकता है। जो कलकत्ता में अपने को बाराबंकवी कहते हुए हिचकता है, वह यक़ीनन विलायत में अपने को हिन्दुस्तानी कहते हुए हिचकेगा। इसी सिद्धान्त के अनुसार रामाधीन कलकत्ता में अपने दोस्तों के बीच बाबू रामाधीन भीखमखेड़वी के नाम से मशहूर हो गए थे। यह सब दानिश टाँडवी की सोहबत में हुआ था। वे टाँडवी की देखादेखी उर्दू कविता में दिलचस्पी लेने लगे और चूँकि कविता में दिलचस्पी लेने की शुरुआत कविता लिखने से होती है, इसलिए दूसरों के देखते–देखते उन्होंने एक दिन एक शेर लिख डाला। जब उसे टाँडवी साहब ने सुना तो, जैसा कि एक शायर को दूसरे शायर के लिए कहना चाहिए, कहा, ‘‘अच्छा शेर कहा है।’’ रामाधीन ने कहा, ‘‘मैंने तो शेर लिखा है, कहा नहीं है।’’ वे बोले, ‘‘ग़लत बात है। शेर लिखा नहीं जा सकता।’’ ‘‘पर मैं तो लिख चुका हूँ।’’ ‘‘नहीं, तुमने शेर कहा है। शेर कहा जाता ...
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