Rahul Mahawar

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‘‘हमारे परदादा का नाम भोलानाथ था। उन्हें बड़ा गुस्सा आता था। नथुने हमेशा फड़का ही करते थे। रोज़ सवेरे उठकर वे पहले अपने बाप से टुर्र-पुर्र करते थे, तब मुँह में पानी डालते थे। टुर्र-पुर्र न होती तो उनका पेट गड़गड़ाया करता।’’ छोटे पहलवान की बातों से अतीत का मोह टपकता था। उनके किस्से सुनते ही उन्नीसवीं सदी के किसी गाँव की तस्वीर सामने आ जाती थी, जिसमें गाय–बैलों से भरे–पूरे दरवाजे़ पर, गोबर और मूत की ठोस खुशबू के बीच, नीम की छाँव तले, जिस्म पर टपकी हुई लसलसी निमकौड़ियाँ झाड़ते हुए दो महापुरुष नंगे बदन अपनी–अपनी चारपाइयों से उठ बैठते थे और उठते ही एक–दूसरे को देर तक सोते रहने के लिए गाली देने लगते ...more
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राग दरबारी
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