Rahul Mahawar

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ठेकेदार ने प्रिंसिपल से आत्मीयता के साथ कहा, ‘‘सब बेईमान हैं। ज़रा–सी आँख लग जाए तो कान का मैल तक निकाल ले जाएँ। ड्योढ़ी मज़दूरी माँगते हैं और काम का नाम सुनकर काँखने लगते हैं।’’ प्रिंसिपल साहब ने कहा, ‘‘सब तरफ़ यही हाल है। हमारे यहाँ ही लीजिए...कोई मास्टर पढ़ाना थोड़े ही चाहता है ? पीछे पड़ा रहता हूँ तब कहीं... !’’ वह आदमी ठठाकर हँसा। बोला, ‘‘मुझे क्या बताते हैं ? यही करता रहता हूँ। सब जानता हूँ।’’ रुककर उसने पूछा, ‘‘इधर कहाँ जा रहे थे ?’’ इसका जवाब क्लर्क ने दिया, ‘‘वैद्यजी के यहाँ। चेकों पर दस्तख़त करना है।’’ ‘‘करा लाइए।’’ उसने प्रिंसिपल को खिसकने का इशारा दिया। जब वे चल दिए तो उसने पूछा, ...more
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राग दरबारी
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