Rahul Mahawar

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सनीचर जब इन इक्केवालों के पास आया, उसके दिमाग में ये सामाजिक-आर्थिक समस्याएँ नहीं थीं। उस समय उसे अपने चुनाव की चिन्ता थी जो कि वोट माँगनेवालों और वोट देनेवालों के बीच पारस्परिक व्यवहार का एकमात्र माध्यम है। इसलिए उसने इन दोनों को बिना किसी प्रस्तावना के बताया कि मैंने प्रधानी का पर्चा दाख़िल किया है और अपना भला चाहते हो तो मुझे ही वोट देना। एक इक्केवाले ने उसे ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर तक देखा और स्वगत–शैली में कहा, ‘‘ये प्रधान बनेंगे। देह पर नहीं लत्ता, पान खायँ अलबत्ता।’’ वोट की भिक्षा बड़े–बड़े नेताओं तक को विनम्र बना देती है। सनीचर तो सनीचर था। यह सुनते ही उसकी हेकड़ी ढीली पड़ गई और ...more
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राग दरबारी
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