उसी दिन शाम के वक़्त रंगनाथ और रुप्पन बाबू गयादीन के पास चुनाव के बारे में उनका विचार जानने के लिए भेजे गए। गयादीन कॉलिज के वाइस-प्रेसिडेण्ट होने के नाते इस समय काफ़ी महत्त्वपूर्ण थे और यह जानना ज़रूरी था कि वे किसको मैनेजर बनाना चाहते हैं और यदि वे वैद्यजी के पक्ष में न हों तो यह भी ज़रूरी था कि किसी तरकीब से उनका हृदय–परिवर्तन किया जाए। रुप्पन बाबू और रंगनाथ प्रारम्भिक वार्ता चालू करने के विचार से उनके पास गए थे। पर गयादीन ने शुरू में ही पूरी बात आसान कर दी। उन्होंने इन दोनों को कायदे से चारपाई पर बैठाया, रंगनाथ से शहरी तालीम के बारे में दो–चार बातें पूछीं, उन्हें शुद्ध घी में बनी हुई मठरी
उसी दिन शाम के वक़्त रंगनाथ और रुप्पन बाबू गयादीन के पास चुनाव के बारे में उनका विचार जानने के लिए भेजे गए। गयादीन कॉलिज के वाइस-प्रेसिडेण्ट होने के नाते इस समय काफ़ी महत्त्वपूर्ण थे और यह जानना ज़रूरी था कि वे किसको मैनेजर बनाना चाहते हैं और यदि वे वैद्यजी के पक्ष में न हों तो यह भी ज़रूरी था कि किसी तरकीब से उनका हृदय–परिवर्तन किया जाए। रुप्पन बाबू और रंगनाथ प्रारम्भिक वार्ता चालू करने के विचार से उनके पास गए थे। पर गयादीन ने शुरू में ही पूरी बात आसान कर दी। उन्होंने इन दोनों को कायदे से चारपाई पर बैठाया, रंगनाथ से शहरी तालीम के बारे में दो–चार बातें पूछीं, उन्हें शुद्ध घी में बनी हुई मठरी और लड्डू खिलाए और चुनाव की बात आते ही साफ़ तौर से कहा, ‘‘हर काम सोच–समझकर करना चाहिए। ज़माने की हवा में न बहना चाहिए। मैनेजर का चुनाव करा दिया जाए, इसमें कोई हर्ज़ नहीं; पर मैनेजर तो बैद महाराज ही को रहना है, क्योंकि कॉलिज तो बैद महाराज ही का है। किसी दूसरे को कैसे मैनेजर बनाया जा सकता है ? इस बात को ठीक ढंग से सोचना चाहिए।’’ उनकी बातों से ऐसा लगा कि खुद रंगनाथ और रुप्पन बाबू वैद्यजी के ख़िलाफ़ वोट देनेवाले हैं और वैद्यजी की ओर से चुनाव–सम्बन्धी प्रचार स्वयं गयादीन कर रहे हैं। रंगनाथ को मजा आ गया, उसने कहा, ‘‘आप लोग पुराने आदमी हैं, हर बात को सही ढंग से सोचते हैं। पर उधर रामाधीन भीखमखेड़वी और कुछ लोग मामा की जगह किसी दूसरे को लाना चाहते हैं। पता नहीं, वे क्या सोचकर ऐसा कर रहे हैं !’’ गयादीन काँखने लगे। धीरे–से बोले, ‘‘तजुर्बा नहीं है। वे समझते हैं कि कोई दूसरा मैनेजर हो गया तो कुछ करके दिखा देगा, पर कहीं इस तरह से कुछ होता है ?’’ रुककर उन्होंने बात पूरी की, ‘‘जैसे नागनाथ वैसे साँपनाथ।’...
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