Rahul Mahawar

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‘‘तो उनका एक शाहज़ादा था। नवाब साहब का। हाँ, हाँ, वही किस्सा सुना रहा हूँ। एक बार वह बेचारा बीमार पड़ गया। बुख़ार था, पर ठीक न होता था। महीनों चला। बड़ी–बड़ी क़ीमती दवाएँ दी गईं। सभी बैद, हकीम, डॉक्टर परेशान। करोड़ों रुपया नाली के रास्ते बह गया। पर शाहज़ादा वैसे–का–वैसा। ‘‘नवाब साहब सिर पीटने लगे। चारों तरफ़ उन्होंने ऐलान कराया कि कोई आधी रियासत ले ले, शाहज़ादी से शादी कर ले, पर किसी तरह शाहज़ादे को चंगा कर दे। तब बड़ी–बड़ी दूर से हकीम लोग आने लगे। बड़ी–बड़ी कोशिशें कीं, पर शाहज़ादे ने आँख न खोली। ‘‘अन्त में एक बुजुर्ग हकीम आए। शाहज़ादे को देखकर बोले, ‘जहाँपनाह, आधी रियासत और शाहज़ादी देने से ...more
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राग दरबारी
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