रुप्पन बाबू अठारह साल के थे। वे स्थानीय कॉलिज की दसवीं कक्षा में पढ़ते थे। पढ़ने से, और खासतौर से दसवीं कक्षा में पढ़ने से, उन्हें बहुत प्रेम था; इसलिए वे उसमें पिछले तीन साल से पढ़ रहे थे। रुप्पन बाबू स्थानीय नेता थे। उनका व्यक्तित्व इस आरोप को काट देता था कि इण्डिया में नेता होने के लिए पहले धूप में बाल सफ़ेद करने पड़ते हैं। उनके नेता होने का सबसे बड़ा आधार यह था कि वे सबको एक निगाह से देखते थे। थाने में दारोग़ा और हवालात में बैठा हुआ चोर–दोनों उनकी निगाह में एक थे। उसी तरह इम्तहान में नक़ल करनेवाला विद्यार्थी और कॉलिज के प्रिंसिपल उनकी निगाह में एक थे। वे सबको दयनीय समझते थे, सबका काम करते
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