Rahul Mahawar

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रंगनाथ को यह खेल फिसड्डी–जैसा मालूम पड़ा, बिलकुल भंग के नशे–जैसा, पर जब उसने दूसरे गुट का निरीक्षण किया तो उसकी धारणा शिवपालगंज के जुए के बारे में बिलकुल ही बदल गई। वे फ़्लैश खेल रहे थे, जो लैंटर्न को ‘लालटेन’ बतानेवाले नियम से यहाँ फल्लास बन गया था। खेल बड़े घमासान का चल रहा था। एक तरफ़ ब्लफ़ का स्वयं–चालित अस्त्र हत्याकाण्ड मचाए हुए था। दूसरी ओर शुद्ध देशी चाल से एक खिलाड़ी बढ़ रहा था। अचानक उसकी अक़्ल का हाथी घबराकर इधर–उधर भागने लगा और मालिक को नीचे फेंककर उसे कुचलने के लिए टाँग उठाकर खड़ा हो गया। उसने पत्ते फेंक दिए और उधर मुट्ठी–भर पैसे फड़ से बटोरकर दूसरे खिलाड़ी ने अपनी जाँघ के नीचे ...more
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राग दरबारी
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