वे कुछ देर रामलीला के राम–लक्ष्मण की तरह भावहीन चेहरा बनाए बैठे रहे। फिर बोले, ‘‘आप लोग तो पढ़े–लिखे आदमी हैं। मैं क्या कह सकता हूँ ? पर सैकड़ों संस्थाएँ हैं जिनकी सालाना बैठकें बरसों नहीं होतीं। अपने यहाँ का ज़िलाबोर्ड ! एक ज़माने से बिना चुनाव कराये हुए इसे सालों खींचा गया है।’’ गाल फुलाकर वे भर्राये गले से बोले, ‘‘देश–भर में यही हाल है।’’ गला देश–भक्ति के कारण नहीं, खाँसी के कारण भर आया था। मालवीयजी ने कहा, “ प्रिंसिपल हज़ारों रुपया मनमाना ख़र्च करता है। हर साल आडिटवाले ऐतराज़ करते हैं, हर साल यह बुत्ता दे जाता है।’’ गयादीन ने बहुत निर्दोष ढंग से कहा, ‘‘आप क्या आडिट के इंचार्ज हैं ?’’
वे कुछ देर रामलीला के राम–लक्ष्मण की तरह भावहीन चेहरा बनाए बैठे रहे। फिर बोले, ‘‘आप लोग तो पढ़े–लिखे आदमी हैं। मैं क्या कह सकता हूँ ? पर सैकड़ों संस्थाएँ हैं जिनकी सालाना बैठकें बरसों नहीं होतीं। अपने यहाँ का ज़िलाबोर्ड ! एक ज़माने से बिना चुनाव कराये हुए इसे सालों खींचा गया है।’’ गाल फुलाकर वे भर्राये गले से बोले, ‘‘देश–भर में यही हाल है।’’ गला देश–भक्ति के कारण नहीं, खाँसी के कारण भर आया था। मालवीयजी ने कहा, “ प्रिंसिपल हज़ारों रुपया मनमाना ख़र्च करता है। हर साल आडिटवाले ऐतराज़ करते हैं, हर साल यह बुत्ता दे जाता है।’’ गयादीन ने बहुत निर्दोष ढंग से कहा, ‘‘आप क्या आडिट के इंचार्ज हैं ?’’ मालवीय ने आवाज़ ऊँची करके कहा, ‘‘जी नहीं, बात यह नहीं है, पर हमसे देखा नहीं जाता कि जनता का रुपया इस तरह बरबाद हो। आखिर...’’ गयादीन ने तभी उनकी बात काट दी; उसी तरह धीरे–से बोले, ‘‘फिर आप किस तरह चाहते हैं कि जनता का रुपया बरबाद किया जाए ? बड़ी–बड़ी इमारतें बनाकर ? सभाएँ बुलाकर ? दावतें लुटाकर ?’’ इस ज्ञान के सामने मालवीयजी झुक गए। गयादीन ने उदारतापूर्वक समझाया, ‘‘मास्टर साहब, मैं ज़्यादा पढ़ा–लिखा तो हूँ नहीं, पर अच्छे दिनों में कलकत्ता–बम्बई देख चुका हूँ। थोड़ा–बहुत मैं भी समझता हूँ। जनता के रुपये पर इतना दर्द दिखाना ठीक नहीं। वह तो बरबाद होगा ही।’’ वे थोड़ी देर चुप रहे, फिर खन्ना मास्टर को पुचकारते–से बोले, ‘‘नहीं मास्टर साहब, जनता के रुपये के पीछे इतना सोच–विचार न करो; नहीं तो बड़ी तकलीफ़ उठानी पड़ेगी।’’ मालवीयजी को गयादीन की चिन्ताधारा बहुत ही गहन–सी जान पड़ी। गहन थी भी। वे अभी किनारे पर बालू ही में लोट रहे थे। बोले, ‘‘गयादीनजी, मैं जानता हूँ कि इन बातों से हम मास्टरों का कोई मतलब नहीं...
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