Rahul Mahawar

10%
Flag icon
प्रिंसिपल साहब भंग पीकर अब तक भूल चुके थे कि आराम हराम है। एक बड़ा–सा तकिया अपनी ओर खींचकर वे इत्मीनान से बैठ गए और बोले, ‘‘बात क्या है ?’’ सनीचर ने बहुत धीरे–से कहा, ‘‘कोअॉपरेटिव यूनियन में ग़बन हो गया है। बद्री भैया सुनेंगे तो सुपरवाइज़र को खा जाएँगे।’’ प्रिंसिपल आतंकित हो गए। उसी तरह फुसफुसाकर बोले, ‘‘ऐसी बात है !’’ सनीचर ने सिर झुकाकर कुछ कहना शुरू कर दिया। वार्तालाप की यह वही अखिल भारतीय शैली थी जिसे पारसी थियेटरों ने अमर बना दिया है। इसके सहारे एक आदमी दूसरे से कुछ कहता है और वहीं पर खड़े हुए तीसरे आदमी को कानोंकान खबर नहीं होती; यह दूसरी बात है कि सौ गज़ की दूरी तक फैले हुए दर्शकगण उस ...more
This highlight has been truncated due to consecutive passage length restrictions.
राग दरबारी
Rate this book
Clear rating