Rahul Mahawar

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कुसहरप्रसाद स्वभाव से गम्भीर थे, इसलिए वे गंगादयाल से व्यर्थ गाली–गलौज नहीं करते थे। उन्होंने रोज़ सवेरे खेतों पर जाने से पहले अपने बाप से झगड़ा करने की परम्परा भी ख़त्म कर दी। इसकी जगह उन्होंने मासिक रूप से युद्ध करने का चलन चलाया। बचपन से ही गंगादयाल को फूहड़ गालियाँ देने में ऐसी दक्षता प्राप्त हो गई थी कि नौजवान गँजहे उनके पास शाम को आकर बैठने लगे थे। वे उनकी मौलिक गालियों को सुनते और बाद में उन्हें अपनी बनाकर प्रचारित करते। गालियों और ग्राम–गीतों का कॉपीराइट नहीं होता। इस हिसाब से गंगादयाल की गालियाँ हज़ार कण्ठों से हज़ार पाठान्तरों के साथ फूटा करती थीं। पर कुसहरप्रसाद अपने बाप की इस ...more
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राग दरबारी
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