सवेरा होते ही मैंने दुरबीनसिंह के जाकर पैर पकड़े कि काका, तुम्हारे नाम में लाल लँगोटवाले का ज़ोर बोल रहा है। तुम्हारा नाम लेकर जान बचा पाया हूँ। दुरबीनसिंह ने पाँव खींच लिए। बोले, ‘जा सनिचरा, कोई फिकिर नहीं। जब तक मैं हूँ, अँधेरे–उजेले में जहाँ मन हो वहाँ घूमा कर। किसी का डर नहीं है। साँप–बिच्छू तू खुद ही निबटा ले, बाक़ी को हमारे लिए छोड़ दे’।’’ यहाँ सनीचर साँस खींचकर चुप हो गया। रंगनाथ समझ गया कि घटिया कहानी–लेखकों की तरह मुख्य बात पर आते–आते वह हवा बाँध रहा है। उसने पूछा, ‘‘फिर तो जब तक दुरबीनसिंह थे, गँजहा लोगों के ठाठ कटते रहे होंगे ?’’ तब रुप्पन बाबू बोले। उन्होंने रंगनाथ की जानकारी में
सवेरा होते ही मैंने दुरबीनसिंह के जाकर पैर पकड़े कि काका, तुम्हारे नाम में लाल लँगोटवाले का ज़ोर बोल रहा है। तुम्हारा नाम लेकर जान बचा पाया हूँ। दुरबीनसिंह ने पाँव खींच लिए। बोले, ‘जा सनिचरा, कोई फिकिर नहीं। जब तक मैं हूँ, अँधेरे–उजेले में जहाँ मन हो वहाँ घूमा कर। किसी का डर नहीं है। साँप–बिच्छू तू खुद ही निबटा ले, बाक़ी को हमारे लिए छोड़ दे’।’’ यहाँ सनीचर साँस खींचकर चुप हो गया। रंगनाथ समझ गया कि घटिया कहानी–लेखकों की तरह मुख्य बात पर आते–आते वह हवा बाँध रहा है। उसने पूछा, ‘‘फिर तो जब तक दुरबीनसिंह थे, गँजहा लोगों के ठाठ कटते रहे होंगे ?’’ तब रुप्पन बाबू बोले। उन्होंने रंगनाथ की जानकारी में पहली बार एक साहित्यिक बात कही। साँस भरकर कहा : कि पुरुस बली नहिं होत है, कि समै होत बलवान। कि भिल्लन लूटीं गोपिका, कि वहि अरजुन वहि बान ॥ रंगनाथ ने पूछा, ‘‘क्या हो गया रुप्पन बाबू ? क्या शिवपालगंज से कोई तुम्हारी गोपिकाएँ लूट ले गया ?’’ रुप्पन बाबू ने कहा, ‘‘सनीचर, दूसरावाला क़िस्सा भी सुना दो।’’ सनीचर ने दूसरा अध्याय शुरू किया : ‘‘भैया, लठैती का काम कोई असेम्बली का काम तो है नहीं। असेम्बली में जितने ही बूढ़े होते जाओ, जितनी ही अकल सठियाती जाए, उतनी ही तरक्की होती है। यही हरनामसिंह को देखो। चलने को उठते हैं तो लगता है कि गिरकर मर जाएँगे। पर दिन–पर–दिन वहाँ उनकी पूछ बढ़ रही है। यहाँ लठैती में कल्ले के ज़ोर की बात है। जब तक चले, तब तक चले। जब नहीं चले, तब हलाल हो गए। ‘‘अभी पाँच–छ: साल हुए होंगे, मैं कातिक के नहान के लिए गंगा घाट गया था। लौटते–लौटते रात हो गई। यही भोलूपुर के पास रात हुई। बढ़िया चटक चाँदनी। बाग़ के भीतर हम मौज में आ गए तो एक चौबोला गाने लगे। तभी किसी ने पीछे से पीठ पर दायें...
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