Rahul Mahawar

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वेदान्त के अनुसार–जिसका हवाला वैद्यजी आयुर्वेद के पर्याय के रूप में दिया करते थे– गुटबन्दी परात्मानुभूति की चरम दशा का एक नाम है। उसमें प्रत्येक ‘तू’, ‘मैं’ को और प्रत्येक ‘मैं’, ‘तू’–को अपने से ज़्यादा अच्छी स्थिति में देखता है। वह उस स्थिति को पकड़ना चाहता है। ‘मैं’ ‘तू’ और ‘तू’ ‘मैं’ को मिटाकर ‘मैं’ की जगह ‘तू’ और ‘तू’ की जगह ‘मैं’ बन जाना चाहता है। वेदान्त हमारी परम्परा है और चूँकि गुटबन्दी का अर्थ वेदान्त से खींचा जा सकता है, इसलिए गुटबन्दी भी हमारी परम्परा है, और दोनों हमारी सांस्कृतिक परम्पराएँ हैं। आज़ादी मिलने के बाद हमने अपनी बहुत–सी सांस्कृतिक परम्पराओं को फिर से खोदकर निकाला है। ...more
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राग दरबारी
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