Rahul Mahawar

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गाँव में मजबूरी नहीं तो और क्या मिलेगा ?’’ गयादीन ने उदासी से कहा। वे हुमसकर धीरे–से बैठ गए थे। चारपाई चरमरायी, पर आज उन्होंने उसके साथ कोई मुरव्वत नहीं की। वे हुमसे हुए बैठे रहे। काँखते हुए बोले, ‘‘रंगनाथ बाबू, तुम शहर के आदमी हो। शहर में हर बात का जवाब होता है। मान लो कोई आदमी मोटर से कुचल जाय, तो कुचला हुआ आदमी अस्पताल में पहुँच जाएगा। अस्पताल में डॉक्टर बदमाशी करे तो उसकी शिकायत हो जाएगी। शिकायत सुननेवाला चुप बैठा रहे तो दस–पाँच लफंगे मिलकर जुलूस निकाल देंगे। उस पर कोई लाठी चला दे तो लोग जाँच बैठलवा देंगे। तो वहाँ हर बात की काट आसानी से निकल आती है। इसीलिए वहाँ मजबूरी की मार नहीं जान ...more
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राग दरबारी
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