दोपहर ढल रही थी। एक हलवाई की दुकान पर एक हलवाई बैठा था जो दूर से ही हलवाई–सा जान पड़ता था। दुकान के नीचे एक नेता खड़ा था जो दूर से ही नेता–जैसा दिखता था, वहीं साइकिल का हैंडिल पकड़े एक पुलिस का सिपाही खड़ा था जो दूर से ही पुलिस का सिपाही दिखता था। दुकान पर रखी हुई मिठाइयाँ बासी और मिलावट के माल से बनी जान पड़ती थीं और थीं भी, दूध पानीदार और अरारूट के असर से गाढ़ा दिख रहा था, और था भी। पृथ्वी पर स्वर्ग का यह एक ऐसा कोना था जहाँ सारी सचाई निगाह के सामने थी। न कहीं कुछ छिपा था, न छिपाने की ज़रूरत थी। दुकान पर जलेबी, पेड़े और गट्टे रखे थे। उन्हीं की बगल में शीशे के छोटे–छोटे कण्टेनरों में कुछ
दोपहर ढल रही थी। एक हलवाई की दुकान पर एक हलवाई बैठा था जो दूर से ही हलवाई–सा जान पड़ता था। दुकान के नीचे एक नेता खड़ा था जो दूर से ही नेता–जैसा दिखता था, वहीं साइकिल का हैंडिल पकड़े एक पुलिस का सिपाही खड़ा था जो दूर से ही पुलिस का सिपाही दिखता था। दुकान पर रखी हुई मिठाइयाँ बासी और मिलावट के माल से बनी जान पड़ती थीं और थीं भी, दूध पानीदार और अरारूट के असर से गाढ़ा दिख रहा था, और था भी। पृथ्वी पर स्वर्ग का यह एक ऐसा कोना था जहाँ सारी सचाई निगाह के सामने थी। न कहीं कुछ छिपा था, न छिपाने की ज़रूरत थी। दुकान पर जलेबी, पेड़े और गट्टे रखे थे। उन्हीं की बगल में शीशे के छोटे–छोटे कण्टेनरों में कुछ रूखे–सूखे लकड़ी के टुकड़े–से पड़े थे जो बिस्कुट, केक और मस्क इत्यादि की परम्परा में बने हुए स्थानीय पदार्थ थे। जैसे शहर में, वैसे यहाँ पर भी, ये पदार्थ बता रहे थे कि पूरब पूरब है और पश्चिम पश्चिम है और दोनों मिठाइयों की मार्फत शिवपालगंज में मिलते हैं। वहीं रुप्पन बाबू और लंगड़ भी मिले। रुप्पन बाबू लंगड़ को कुछ उसी तरह से देखते थे जैसे पहले दर्जे में सफ़र करनेवाला तीसरे दर्ज़े के किसी ऐसे मुसाफ़िर को देखता है जिस पर बिना टिकट चलने का शुबहा किया जा रहा हो। पर आज रुप्पन बाबू उदासी के उस आलम में थे जिसमें विश्वमैत्री आदि पंचशील के सभी सिद्धान्तों को आसानी से अमल में लाया जा सकता है। इसलिए उन्होंने गिरी आवाज़ में पूछा, ‘‘क्या हो रहा है जी तुम्हारे मामले में ?’’ ‘‘आज तो छुट्टी है, बापू ! पता नहीं चल पाया। वैसे नकल तो अब बन ही गई होगी।’’ लंगड़ ने पिछले दिनों की प्रगति बतानी शुरू की, ‘‘बन तो तभी गई थी, पर मैं लेने नहीं जा पाया। मुझे मियादी बुखार आ गया था। उस दिन सदर की कचहरी में गिरा तो फिर उठ नही...
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