Rahul Mahawar

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प्रिंसिपल साहब की गरदन मुड़ गई। समझनेवाले समझ गए कि अब उनके हाथ हाफ़ पैंट की जेबों में चले जाएँगे और वे चीखेंगे। वही हुआ। वे बोले, ‘‘मैं सब समझता हूँ। तुम भी खन्ना की तरह बहस करने लगे हो। मैं सातवें और नवें का फ़र्क़ समझता हूँ। हमका अब प्रिंसिपली करै न सिखाव भैया। जौनु हुकुम है, तौनु चुप्पे कैरी आउट करौ। समझ्यो कि नाहीं ?’’ प्रिंसिपल साहब पास के ही गाँव के रहनेवाले थे। दूर–दूर के इलाक़ों में वे अपने दो गुणों के लिए विख्यात थे। एक तो ख़र्च का फ़र्ज़ी नक्शा बनाकर कॉलिज के लिए ज़्यादा–से–ज़्यादा सरकारी पैसा खींचने के लिए, दूसरे गुस्से की चरम दशा में स्थानीय अवधी बोली का इस्तेमाल करने के लिए। जब वे ...more
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राग दरबारी
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