Rahul Mahawar

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कमरे में अन्दर वैद्यजी मरीज़ों को दवा दे रहे थे। अचानक वे वहीं से बोले, ‘‘शान्त रहो रुप्पन। इस कुव्यवस्था का अन्त होने ही वाला है।’’ जान पड़ा कि आकाशवाणी हो रही है : ‘घबराओ नहीं वसुदेव, कंस का काल पैदा होने ही वाला है।’ रुप्पन बाबू शान्त हो गए। रंगनाथ ने कमरे की ओर मुँह करके ज़ोर से पूछा, ‘‘मामाजी, आपका इस कॉलिज से क्या ताल्लुक़ है ?’’ “ताल्लुक़ ?’’ कमरे में वैद्यजी की हँसी बड़े ज़ोर से गूँजी। ‘‘तुम जानना चाहते हो कि मेरा इस कॉलिज से क्या सम्बन्ध है ? रुप्पन, रंगनाथ की जिज्ञासा शान्त करो।’’ रुप्पन ने बड़े कारोबारी ढंग से कहा, ‘‘पिताजी कॉलिज के मैनेजर हैं। मास्टरों का आना–जाना इन्हीं के हाथ में ...more
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राग दरबारी
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