Rahul Mahawar

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लड़के ने अपना सवाल दोहराया, पर उसके पहले ही उनका ध्यान दूसरी ओर चला गया था। लड़कों ने भी कान उठाकर सुना, बाहर ईख चुरानेवालों और ईख बचानेवालों की गालियों के ऊपर, चपरासी के ऊपर पड़नेवाली प्रिंसिपल की फटकार के ऊपर– म्यूज़िक–क्लास से उठनेवाली हारमोनियम की म्याँव–म्याँव के ऊपर–अचानक ‘भक्–भक्–भक्’ की आवाज़ होने लगी थी। मास्टर मोतीराम की चक्की चल रही थी। यह उसी की आवाज़ थी। यही असली आवाज़ थी। अन्न–वस्त्र की कमी की चीख़–पुकार, दंगे-फ़साद के चीत्कार, इन सबके तर्क के ऊपर सच्चा नेता जैसे सिर्फ़ आत्मा की आवाज़ सुनता है, और कुछ नहीं सुन पाता; वही मास्टर मोतीराम के साथ हुआ। उन्होंने और कुछ नहीं सुना। सिर्फ़ ...more
राग दरबारी
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