उसी के साथ दूसरे लड़के को भी अहसास हुआ कि शोषण और उत्पीड़न की कहानियाँ रट लेना ही काफ़ी नहीं हैं और जिस गधे की पीठ पर सारे वेदों, उपनिषदों और पुराणों का बोझ लदा होता है, वह अन्तर्राष्ट्रीय विद्वत्–परिषद् का अध्यक्ष बन जाने के बावजूद मनुष्य नहीं हो जाता–वह होने के लिए विद्वत्ता का बोझा ढोने के सिवाय कुछ और भी करना होता है।