शहर होता तो वह किसी कॉफ़ी-हाउस में बैठकर दोस्तों के सामने इस चुनाव पर लम्बा–चौड़ा व्याख्यान दे डालता, उन्हें बताता कि किस तरह तमंचे के ज़ोर से छंगामल विद्यालय इंटर कॉलिज की मैनेजरी हासिल की गई है और मेज़ पर हाथ पटककर कहता कि जिस मुल्क में इन छोटे–छोटे ओहदों के लिए ऐसा किया जाता है, वहाँ बड़े–बड़े ओहदों के लिए क्या नहीं किया जाता होगा। यह सब कहकर, उपसंहार में अंग्रेज़ी के चार ग़लत–सही जुमले बोलकर, वह कॉफ़ी का प्याला खाली कर देता और चैन से महसूस करता कि वह एक बुद्धिजीवी है और प्रजातन्त्र के हक में एक बेलौस व्याख्यान देकर और चार निकम्मे आदमियों के आगे अपने दिल का गुबार निकालकर उसने ‘क्राइसिस ऑफ़
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