राग दरबारी
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Read between November 23 - December 16, 2020
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जिसे अपने को बम्बई में ‘सँडीलवी’ कहते हुए शरम नहीं आती, वही कुरता–पायजामा पहनकर और मुँह में चार पान और चार लिटर थूक भरकर न्यूयार्क के फुटपाथों पर अपने देश की सभ्यता का झण्डा खड़ा कर सकता है।
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शहर होता तो वह किसी कॉफ़ी-हाउस में बैठकर दोस्तों के सामने इस चुनाव पर लम्बा–चौड़ा व्याख्यान दे डालता, उन्हें बताता कि किस तरह तमंचे के ज़ोर से छंगामल विद्यालय इंटर कॉलिज की मैनेजरी हासिल की गई है और मेज़ पर हाथ पटककर कहता कि जिस मुल्क में इन छोटे–छोटे ओहदों के लिए ऐसा किया जाता है, वहाँ बड़े–बड़े ओहदों के लिए क्या नहीं किया जाता होगा। यह सब कहकर, उपसंहार में अंग्रेज़ी के चार ग़लत–सही जुमले बोलकर, वह कॉफ़ी का प्याला खाली कर देता और चैन से महसूस करता कि वह एक बुद्धिजीवी है और प्रजातन्त्र के हक में एक बेलौस व्याख्यान देकर और चार निकम्मे आदमियों के आगे अपने दिल का गुबार निकालकर उसने ‘क्राइसिस ऑफ़ ...more
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उसी के साथ दूसरे लड़के को भी अहसास हुआ कि शोषण और उत्पीड़न की कहानियाँ रट लेना ही काफ़ी नहीं हैं और जिस गधे की पीठ पर सारे वेदों, उपनिषदों और पुराणों का बोझ लदा होता है, वह अन्तर्राष्ट्रीय विद्वत्–परिषद् का अध्यक्ष बन जाने के बावजूद मनुष्य नहीं हो जाता–वह होने के लिए विद्वत्ता का बोझा ढोने के सिवाय कुछ और भी करना होता है।