Suyash Singh

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सिर्फ़ ख़ंजर ही नहीं आंखों में पानी चाहिये ऐ ख़ुदा, दुश्मन भी मुझको ख़ानदानी चाहिये   मैंने अपनी खुश्क आंखों से लहू छलका दिया इक समन्दर कह रहा था मुझको पानी चाहिये   शहर की सारी अलिफ़ लैलाएं बूढ़ी हो चुकीं शाहज़ादे को कोई ताज़ा कहानी चाहिये   मैंने ऐ सूरज तुझे पूजा नहीं समझा तो है मेरे हिस्से में भी थोड़ी धूप आनी चहिये   मेरी क़ीमत कौन दे सकता है इस बाज़ार में तुम ज़ुलेखा1 हो , तुम्हें क़ीमत लगानी चाहिये   ज़िन्दगी है एक सफ़र और ज़िन्दगी की राह में ज़िन्दगी भीआये तो ठोकर लगानी चाहिये
नाराज़
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