ये दुनिया जस्त1 भर होगी हमारी यहां कैसे बसर होगी हमारी ये काली रात होगी ख़त्म किस दिन न जाने कब सहर होगी हमारी इसी उम्मीद पर येरतजगे हैं किसी दिन रात भर होगी हमारी दर-ए-मस्जिद पे कोई शै पड़ी है दुआए बेअसर होगी हमारी चले हैं गुमरही को घर से लेकर यही तो हमसफ़र होगी हमारी न जाने दिन कहां निकलेगा अपना न जाने शब किधर होगी हमारी