Suyash Singh

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ये दुनिया जस्त1 भर होगी हमारी यहां कैसे बसर होगी हमारी   ये काली रात होगी ख़त्म किस दिन न जाने कब सहर होगी हमारी   इसी उम्मीद पर येरतजगे हैं किसी दिन रात भर होगी हमारी   दर-ए-मस्जिद पे कोई शै पड़ी है दुआए बेअसर होगी हमारी   चले हैं गुमरही को घर से लेकर यही तो हमसफ़र होगी हमारी   न जाने दिन कहां निकलेगा अपना न जाने शब किधर होगी हमारी
नाराज़
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