Suyash Singh

82%
Flag icon
मुझ में कितने राज़ हैं बतलाऊं क्या? बन्द एक मुद्दत से हूं खुल जाऊं क्या?   आजिज़ी, मिन्नत, ख़ुशामद, इल्तिजा और मैं क्या-क्या करूं मर जाऊं क्या?   कल यहां मैं था जहां तुम आज हो मैं तुम्हारी ही तरह इतराऊं क्या?   तेरे जलसे में तेरा परचम लिये सैकड़ों लाशें भी हैं गिनवाऊं क्या?   एक पत्थर है वह मेरी राह का गर न ठुकराऊं तो ठोकर खाऊं क्या?   फिर जगाया तूने सोये शेर को फिर वही लहजा दराज़ी ! आऊं क्या?
नाराज़
Rate this book
Clear rating