Suyash Singh

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हाथ खाली हैं तेरे शहर से जाते जाते जान होती तो मेरी जान , लुटाते जाते   अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है उम्र गुज़री है तेरे शहर में आते जाते   रेंगने की भी इजाज़त नहीं हमको वरना हम जिधर जाते नए फूल खिलाते जाते   मुझ को रोने का सलीक़ा भी नही है शायद लोग हंसते हैं मुझे देख के आते जाते   अब के मायूस हुआ यारों को रुख़सत करके जा रहे थे तो कोई ज़ख़्म लगाते जाते   हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते
नाराज़
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