बूढ़े हुए यहां कई अय्याश बम्बई तू आज भी जवान है शाबाश बम्बई पूछूं के मेरे बच्चों के ख़्वाबों का क्या हुआ मिल जाए बम्बई में कहीं काश बम्बई दिल बैठते हैं दौड़ते घोड़ों के साथ-साथ सोने की फ़सल बोती है क़ल्लाश1 बम्बई दो गज़ जमीन भी न मिली दफ़्न के लिये घर में पड़ी हुई है तेरी लाश बम्बई हर शख़्स आ के जीत न पायेगा बाज़ियां उलटे छपे हुए हैं तेरे ताश बम्बई इस शहर में ज़मीन है महंगी बहुत मगर घर की छतों पे रखती है आकाश बम्बई