धर्म बूढ़े हो गये मज़हब पुराने हो गये ऐ तमाशागरतेरे करतबपुराने हो गये आज कलछुट्टी के दिन भी घर पड़े रहते हैं हम शाम , साहिल , तुम ,समन्दर सब पुराने हो गये कैसी चाहत , क्या मुहब्बत , क्या मुरव्वत , क्या ख़ुलूस इन सभी अलफ़ाज़ के मतलब पुराने हो गये रेंगते रहते हैं हम सदियों से सदियां ओढ़कर हम नये थे ही कहां जो अबपुराने हो गये आस्तीनों में वही ख़ंजर वही हमदर्दियां हैं नयेअहबाब लेकिन ढबपुरानेहो गये एक ही मर्कज़1 पे आंखें जंग आलूदा2 हुईं चाक पर फिर-फिर के रौज़-ओ-शब3 पुराने हो गये