Suyash Singh

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मौसम बुलाएंगे तो सदा कैसे आएगी सब खिड़कियां हैं बन्द हवा कैसे आएगी   मेरा ख़ुलूस1 इधर हैं उधर है तेरा गुरूर तेरे बदन पे मेरी क़बा2 कैसे आएगी   रस्ते में सर उठाए हैं रस्मों की नागिनें ऐ जान ए इन्तज़ार ! बता कैसे आएगी   सर रख के मेरे ज़ानों पे सोई है ज़िन्दगी ऐसे में आई भी तो कज़ा कैसे आएगी   आँखों में आंसुओं को अगर हम छुपाएंगे तारों को टूटने की सदा कैसे आएगी   वह बे वफ़ा यहां से भी गुजरा है बारहा इस शहर की हदों में वफ़ा कैसे आएगी
नाराज़
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