जितना देख आये हैं अच्छा है , यही काफ़ी है अब कहांजाइये दुनिया है , यही काफ़ी है हमसे नाराज़ है सूरज कि पड़े सोते हैं जागउठने का इरादाहै यहीकाफ़ी है अब ज़रूरी तो नहीं है के वह फलदार भी हो शाख से पेड़ का रिश्ता है यही काफ़ी है लाओ मैं तुमको समुन्दर के इलाक़े लिख दूं मेरे हिस्से में ये क़तरा है यही काफ़ी है गालियों से भी नवाज़े तो करम है उसका वह मुझे याद तो करता है यही काफ़ी है अब अगर कम भी जियें हम तो कोई रंज नहीं हमको जीने का सलीक़ा है यही काफ़ी है क्या ज़रूरी है कभी तुम से मुलाक़ातभीहो तुमसे मिलने की तमन्ना है यही काफ़ी है अब किसी और तमाशे की ज़रूरत क्या है ये जो दुनिया का तमाशा
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