Suyash Singh

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ज़ख़म पर ज़ख़म का गुमां न रहे ज़ख़म इतना पुराना रक्खा जाए   दिल लुटाने में एहतियात रहे यह ख़ज़ाना खुला न रक्खा जाए   नील पड़ते रहें जबीनों पर पत्थरों को ख़फ़ा न रक्खा जाए   यार ! अब उस की बेवफ़ाई का नाम कुछ शायराना रक्खा जाए
नाराज़
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