Suyash Singh

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छत से उसकी धूप के नेज़े1 आते हैं जिस आंगन में छांव हमारी रहती है   घर के बाहर ढूंढता रहता हूं दुनिया घर के अन्दर दुनियादारी रहती है
नाराज़
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