Alok

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हमारा ज़िक्र भी अब जुर्म हो गया है वहां दिनों की बात है महफ़िल की आबरू हम थे   ख़यालथा कि ये पथराव रोक दें चल कर जो होशआया तो देखा लहू - लहू हम थे
नाराज़
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