Alok

6%
Flag icon
सिर्फ़ सच और झूठ की मीज़ान1 में रखे रहे हम बहादुर थे मगर मैदान में रखे रहे   जुगनुओं ने फिर अंधेरों से लड़ाई जीत ली चांद सूरज घर के रोशनदान में रखे रहे   धीरे - धीरे सारी किरनें ख़ुदकुशी करने लगीं हम सहीफ़ा2 थे मगर जुज़दान3 में रखे रहे   बन्द कमरे खोल कर सच्चाइयां रहने लगीं ख़्वाब कच्ची धूप थे दालान में रखे रहे   सिर्फ़ इतना फ़ासला है जिन्दगी से मौत का शाख़ से तोड़े गए गुलदान में रखे रहे   ज़िन्दगी भर अपनी गूंगी धड़कनों के साथ-साथ हम भी घर के क़ीमती सामान में रखे रहे 1.
नाराज़
Rate this book
Clear rating