Alok

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ये हवाएं उड़ न जाएं ले के काग़ज़ का बदन दोस्तों मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो   ले तो आए शायरी बाज़ार में राहत मियां क्या ज़रूरी है के लहजे को भी बाज़ारी रखो
नाराज़
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