Alok

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ख़ाली कशकौल1 पे इतराई हुई फिरती है ये फक़ीरी किसी दस्तार2 की मोहताज नहीं   ख़ुद कफ़ीली3 का हुनर सीख लिया है मैंने ज़िन्दगी अब किसी सरकार की मोहताज नहीं
नाराज़
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