Alok

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अब किसी शख़्स में सच सुनने की हिम्मत है कहां मुश्किलों ही से कोई पास बिठाता है मुझे   कैसे महफ़ूज़ रखूं खुद को अजायब घर में जो भी आता है यहां हाथ लगाता है मुझे
नाराज़
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