Alok

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दरबदर जो थे वो दीवारों के मालिक हो गये मेरे सब दरबान, दरबारों के मालिक हो गये   लफ़्ज़ गूंगे हो चुके तहरीर1 अन्धी हो चुकी जितने मुख़्बिर थे वह अख़बारों के मालिक हो गये   लाल सूरज आसमां से घर की छत पर आ गया जितने थे बेकार सब कारों के मालिक हो गये
नाराज़
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