और समन्दर मर गया… और समन्दर मर गया, उस रात जिस शब, उसके साहिल से लगी चट्टान से, कूद कर जाँ दे दी उस महताब ने— जिसका चेहरा देख कर तूफ़ान उठते थे समन्दर में कभी, उस के पांव की गुलाबी एड़ियों के नीचे अपनी बिलबिलाती झाग के नम्दे बिछाने के लिये— साहिलों पर सर पटख़ देती थीं लहरें-लेट जाती थीं लौट कर अपने उफ़ुक़ पर, ग़र्क़ सब लहरें हुयीं। और समन्दर मर गया उस रात जब, उसके साहिल से लगी चट्टान से, कूद कर जाँ दे दी उस महताब ने!!