बुढ़िया, तेरे साथ तो मैने, जीने की हर शै बाँटी है! दाना पानी, कपड़ा लत्ता, नींदें और जगराते सारे, औलादों के जनने से बसने तक, और बिछड़ने तक! उम्र का हर हिस्सा बाँटा है।— तेरे साथ जुदाई बाँटी, रूठ, सुलह, तन्हाई भी, सारी कारस्तानियाँ बाँटीं, झूठ भी और सच्चाई भी, मेरे दर्द सहे हैं तूने, तेरी सारी पीड़ें मेरे पोरों में से गुज़री हैं, साथ जिये हैं— साथ मरें ये कैसे मुमकिन हो सकता है? दोनों में से एक को इक दिन, दूजे को शम्शान पे छोड़ के, तन्हा वापस लौटना होगा!!