Shardul Kulkarni

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ज़रा आवाज़ का लहजा तो बदलो— ज़रा मद्धिम करो इस आँच को सोना कि जल जाते हैं कँगुरे नर्म रिश्तों के! ज़रा अलफ़ाज़ के नाख़ुन तराशो, बहुत चुभते हैं जब नाराज़गी से बात करती हो!!
Shardul Kulkarni
Sigh
रात पश्मीने की
by Gulzar
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