Shardul Kulkarni

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शोला सा गुज़रता है मेरे जिस्म से होकर किस लौ से उतारा है ख़ुदावंद ने तुम को! तिनकों का मेरा घर है, कभी आओ तो क्या हो?
Shardul Kulkarni
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रात पश्मीने की
by Gulzar
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