बुद्धम शरणम गच्छामि, और बुद्धम शरणम गच्छामि— ये जाप मुसलसल सुनते सुनते, अब लगता है जैसे मंतर नहीं, चेतावनी है ये— “मुक्ति राह” से बाहर आना,— अब उतना ही मुश्किल है, जितना संसार से बाहर जाना मुश्किल था!!
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avani kulkarni