रात पश्मीने की
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by Gulzar
Read between July 18 - August 1, 2017
23%
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वो सारा इल्म तो मिलता रहेगा बाद में भी मगर वो जो किताबों में मिला करते थे सूखे फूल और महके हुए रुक़्के किताबें मांगने, गिरने, उठाने के बहाने रिश्ते बनते थे उनका क्या होगा? वो शायद अब नहीं होंगे!
Shardul Kulkarni
I am reading it on kindle . Ironical ,eh?
41%
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बुद्धम शरणम गच्छामि, और बुद्धम शरणम गच्छामि— ये जाप मुसलसल सुनते सुनते, अब लगता है जैसे मंतर नहीं, चेतावनी है ये— “मुक्ति राह” से बाहर आना,— अब उतना ही मुश्किल है, जितना संसार से बाहर जाना मुश्किल था!!
Shardul Kulkarni
beautifull.
avani kulkarni liked this
avani kulkarni
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avani kulkarni
Wow!
61%
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और समन्दर मर गया… और समन्दर मर गया, उस रात जिस शब, उसके साहिल से लगी चट्टान से, कूद कर जाँ दे दी उस महताब ने— जिसका चेहरा देख कर तूफ़ान उठते थे समन्दर में कभी, उस के पांव की गुलाबी एड़ियों के नीचे अपनी बिलबिलाती झाग के नम्दे बिछाने के लिये— साहिलों पर सर पटख़ देती थीं लहरें-लेट जाती थीं लौट कर अपने उफ़ुक़ पर, ग़र्क़ सब लहरें हुयीं। और समन्दर मर गया उस रात जब, उसके साहिल से लगी चट्टान से, कूद कर जाँ दे दी उस महताब ने!!
69%
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ज़रा आवाज़ का लहजा तो बदलो— ज़रा मद्धिम करो इस आँच को सोना कि जल जाते हैं कँगुरे नर्म रिश्तों के! ज़रा अलफ़ाज़ के नाख़ुन तराशो, बहुत चुभते हैं जब नाराज़गी से बात करती हो!!
Shardul Kulkarni
Sigh
70%
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बुढ़िया, तेरे साथ तो मैने, जीने की हर शै बाँटी है! दाना पानी, कपड़ा लत्ता, नींदें और जगराते सारे, औलादों के जनने से बसने तक, और बिछड़ने तक! उम्र का हर हिस्सा बाँटा है।— तेरे साथ जुदाई बाँटी, रूठ, सुलह, तन्हाई भी, सारी कारस्तानियाँ बाँटीं, झूठ भी और सच्चाई भी, मेरे दर्द सहे हैं तूने, तेरी सारी पीड़ें मेरे पोरों में से गुज़री हैं, साथ जिये हैं— साथ मरें ये कैसे मुमकिन हो सकता है? दोनों में से एक को इक दिन, दूजे को शम्शान पे छोड़ के, तन्हा वापस लौटना होगा!!
Shardul Kulkarni
Shit.
75%
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आँधी का हाथ पकड़ कर शायद, उसने कल उड़ने की कोशिश की थी औंधे मुँह बीच सड़क जा के गिरा है!!
Shardul Kulkarni
मस्त .
84%
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तुम्हारी ख़ुश्क सी आँखें भली नहीं लगतीं वह सारी यादें जो तुमको रूलायें भेजी हैं
Shardul Kulkarni
ohoh
89%
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सामने आये मेरे, देखा मुझे, बात भी की मुस्कुराए भी, पुरानी किसी पहचान की ख़ातिर कल का अख़बार था, बस देख लिया, रख भी दिया
Shardul Kulkarni
Don't I know it.
90%
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शोला सा गुज़रता है मेरे जिस्म से होकर किस लौ से उतारा है ख़ुदावंद ने तुम को! तिनकों का मेरा घर है, कभी आओ तो क्या हो?
Shardul Kulkarni
.........
92%
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तमाम सफ़हे किताबों के फड़फड़ाने लगे हवा धकेल के दरवाज़ा आ गई घर में! कभी हवा की तरह तुम भी आया जाया करो!!
Shardul Kulkarni
goooooood.