Neeraj Chavan

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किताबें झांकती हैं बन्द अलमारी के शीशों से बड़ी हसरत से तकती हैं महीनों अब मुलाक़ातें नही होतीं जो शामें इन की सोहबत में कटा करती थीं, अब अक्सर गुज़र जाती हैं ‘कमप्यूटर’ के पर्दों पर बड़ी बेचैन रहती हैं किताबें….
रात पश्मीने की
by Gulzar
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