Neeraj Chavan

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ये राह बहुत आसान नहीं, जिस राह पे हाथ छुड़ा कर तुम यूं तन तन्हा चल निकली हो इस ख़ौफ़ से शायद राह भटक जाओ न कहीं हर मोड़ पे मैने नज़्म खड़ी कर रखी है! थक जाओ अगर—— और तुमको ज़रुरत पड़ जाये, इक नज़्म की ऊँगली थाम के वापस आ जाना!
रात पश्मीने की
by Gulzar
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