है सोंधी तुर्श सी ख़ुश्बू धुएँ में, अभी काटी है जंगल से, किसी ने गीली सी लकड़ी जलायी है! तुम्हारे जिस्म से सरसब्ज़ गीले पेड़ की ख़ुश्बू निकलती है! घनेरे काले जंगल में, किसी दरिया की आहट सुन रहा हूँ मैं, कोई चुपचाप चोरी से निकल के जा रहा है! कभी तुम नींद में करवट बदलती हो तो बल पड़ता है दरिया में! तुम्हारी आँख में परव़ाज दिखती है परिन्दों की तुम्हारे क़द से अक्सर आबशारों के हसीं क़द याद है!