Onkar Thakur

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बे-यारो मददगार ही काटा था सारा दिन कुछ ख़ुद से अजनबी सा, तन्हा, उदास सा, साहिल पे दिन बुझा के मैं, लौट आया फिर वहीं, सुनसान सी सड़क के ख़ाली मकान में! दरवाज़ा खोलते ही, मेज़ पे रखी किताब ने, हल्के से फड़फड़ा के कहा, “देर कर दी दोस्त!”
Onkar Thakur
Books
रात पश्मीने की
by Gulzar
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